अकसर ऐसा होता है कि हमारा खुद में विशवास कम हो जाता है। दफ्तर में बॉस के फिकरे , या फिर सहकर्मियों की खतरनाक योजनायें - सब कुछ आपको पीछे खींचता हुआ सा लगता है। आपको लगता है कि इस से बुरा कुछ हो ही नही सकता । लेकिन आप भूल जाते है कि ऊपर वह सब देख रह है - एक दोहा अर्ज़ है
अपने नाम को भूल जा , राम में में को लिए मना
बाकी सब कुछ वह करे, तू काहे को तना
इसका मतलब है -कि वह सब देख रहा है । अगर आपको लगता है कि आपके हालात से बुरा कुछ हो नही सकता तो आप भगवान् पर विश्वास रखें - उसने आदित्य और शाद कि जोडी बनाई है - और इस जोडी ने बनायी है "झूम बराबर झूम" - जिससे बुरा कुछ नही हो सकता आपका बॉस भी इस से अच्छा होगा ।
एक लघु कथा को उपन्यास बनाने की यह कोशिश एक नाकाम कोशिश से ज़्यादा कुछ नही है। फिल्म में गानों की संख्या तो कम है - लेकिन एक एक गाना दफ्तर की प्रबंधन प्रशिक्षण जैसा है -
- जो बार बार एक ही बात कहते हैं
- जिसमे बहुत नींद आती है
- जो ख़त्म होने का नाम ही नही लेते
- सिर्फ शिक्षक ख़ूबसूरत होते हैं
फिल्म का पहला भाग बेहद ढीला और नीरस है । कॉमेडी है , लेकिन एक हलकी सी मुस्कान से ज़्यादा कुछ नही ला पाती। जब इंटरवल होता है तो एक खोये से एहसास के साथ दर्शक जागता है कि "यार कहानी तो बड़ी ही नही !" इंटरवल के एकदम बाद निर्देशक एक और मोड़ लेटा है - और नीरस होने के लिए - "बोल न हलके हलके" गाने के साथ । आप सोचते होंगे कि यह गाना तो हमने टीवी पर नही देखा । यह गाना टीवी पर इसलिये नही दिखाया जाता क्योंकि जिस जिस ने यह गाना देखा वह कभी यह फिल्म देखने कि हिम्मत नही कर सकता । बिना सर पैर के इस गाने में एक ही बात अच्छी है कि यह दिल्ली में फिल्माया जाया है - बस ।
इतना कहने के बाद भी कुछ चीज़ें हैं जो झुट्लायी नही जा सकतीं , जिनमें से एक है बेह्तेरीन अदाकारी। अभिषेक , लारा और बोबी की अदाकारी का जवाब नही है । बल्कि बोबी भी अची अदाकारी दिखा दृश्य में जान दाल सकते हैं - यह जान कर आपको जितना आश्चर्य हो रहा है , उससे ज़्यादा मुझे देख कर हुआ था। प्रीती ठीक लगी है - पर उनकी अदाकारी में बदलाव की ज़रूरत है - हर फिल्म में एक जैसी अदाकारी अब ज़्यादा दिनों तक नही चलेगी ।
अब बात फिल्म के नाम की - बात झूमने की। तीन चौथायी फिल्म बिना झूमे ही निकल जाती है - लेकिन फिर आता है साऊथ हॉल डान्स प्रतियोगिता का sequence । इसके लिए "गज़ब" से नीचे कोई शब्द नही है । अभिषेक, लारा , प्रीती और बोबी के खतरनाक नृत्य ने इसमें जान डाल दीं है - इतनी जान कि एक पल के लिए लगता है कि पैसे वसूल हो गए । फिर याद आता है कि हम तो multiplex में फिल्म देख रहे है - और कुछ घाटा तो हुआ है ।
और हाँ , इसमें अमिताभ बच्चन भी है - सिर्फ बैंड बजाने के लिए । पूरी फिल्म में उनके पास एक ही dialogue है - "Mindblowing" । जी अमिताभ जी, हमारे दिमाग का भी fuse उड़ गया , यह फिल्म देख कर।
सब मिला कर एक जानदार अदाकारी से भरी एक बेजान कहानी का नाम है - "झूम बराबर झूम" ।
तो देखें या ना देखें ?
ज़रूर देखें - पर डीवीडी पर (ओरिजनल देखना , पायरेटेड नही ), या फिर ३ महीने में टीवी पर, या दफ्तर की पार्टियों पर । अपनी जेब के पैसे संभाल कर रखें ।
अमित
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