बदलते मौसमों को क्या रोकेगी सरहद
काग़ज़ पर खींची वो एक लकीर है बस
ना पूछेंगे हम कुरान-औ-गीता से रास्ता
अपना नाखुदा तो यह ज़मीर है बस
तेरी तारीफ में इतनी सी क्या है बस
तू मेरे हर एक ख्वाब की taabeer है बस
नाराजगी का hak तो हम भी रखते है
रूठ जाना क्या हुस्न की जागीर है बस
Friday, May 23, 2008
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